चीन ने हाल ही में अमेरिका पर साइबर अटैक के आरोप लगाए थे और अब एक-दूसरे के बीच जारी टैरिफ वॉर का तनाव साइबर स्पेस तक फैल गया है. कई लोगों को डर है कि दोनों सुपर पावर्स के बीच कारोबारी जंग गंभीर नतीजों के साथ साइबर वॉर में बदल सकती है, जिसका असर दुनिया के बाकी मुल्कों पर भी पड़ सकता है.
किसका पलड़ा रहेगा भारी?
इस हाइपर कनेक्टेड वर्ल्ड में बिजनेस और साइबर स्पेस उन प्रमुख रणनीतिक क्षेत्रों में से हैं जो किसी देश की सुरक्षा की बुनियाद हैं. अमेरिका-चीन के बीच प्रतिद्वंद्विता अब इन दोनों क्षेत्रों को छू रही है. चीन ने आरोप लगाया है कि हेइलोंगजियांग प्रांत में आयोजित 2025 के एशियन विंटर गेम्स पर साइबर अटैक में तीन अमेरिकी सरकारी एजेंट शामिल थे.
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चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने मंगलवार, 15 अप्रैल को कहा, ‘यह कदम बहुत ही गंभीर है क्योंकि इससे चीन की सीक्रेट इन्फो, नेशनल सिक्योरिटी, फाइनेंस, सोसाइटी और प्रोडक्शन के साथ-साथ उसके नागरिकों के पर्सनल डेटा की सुरक्षा को गंभीर रूप से खतरा है. चीन, अमेरिकी सरकार की इस हरकत की निंदा करता है.’
चीन ने अमेरिका पर लगाए आरोप
हाल ही में एक बयान में चीन ने अमेरिकी एजेंट कैथरीन ए विल्सन, रॉबर्ट जे स्नेलिंग और स्टीफन डब्ल्यू जॉनसन के नामों की भी खुलासा किया, जो हेइलोंगजियांग में एनर्जी, टेलीकॉम और डिफेंस रिसर्च सेक्टर सहित महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर को टारगेट करके किए गए साइबर अटैक में शामिल थे. कई महीनों से सरकार से जुड़े चीनी हैकिंग ग्रुप कथित तौर पर एनर्जी ग्रिड, ट्रांसपोर्टेशन नेटवर्क और डिफेंस सिस्टम जैसे अहम अमेरिकी इंफ्रास्ट्रक्चर पर साइबर अटैक कर रहे हैं.
दिसंबर 2024 में चीनी अधिकारियों ने कथित तौर पर अहम अमेरिकी इंफ्रास्ट्रक्चर के खिलाफ साइबर अटैक करने की बात कुबूल की, विशेष रूप से वोल्ट टाइफून नामक एक चीन समर्थित हैकिंग ग्रुप ने इस बात को स्वीकार किया है.
मॉडर्न हथियार बने साइबर ऑपरेशन
सीक्रेट साइबर ऑपरेशन लगभग हर देश के लिए एक मजबूत टूल बन गए हैं, जिन्हें महत्वपूर्ण जानकारी हासिल करने और अपने हितों को आगे बढ़ाने के लिए दोस्तों और दुश्मनों के खिलाफ समान रूप से इस्तेमाल किया जाता है. माना जाता है कि अमेरिका भी विरोधियों पर ऐसे साइबर अटैक करता है.
चीन अपने डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर पर हमलों का खुलासा शायद ही कभी करता है और जब करता भी है, तो वह अटैक करने वाले, नेचर और मकसद के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं देता. साथ ही चीन के सिस्टम में सेंध लगाना मुश्किल है क्योंकि उसके इंटरनेट पर ग्रेट फ़ायरवॉल है.
भविष्य के गंभीर खतरे
अगर ट्रेड वॉर आगे बढ़कर पूरी तरह से साइबर युद्ध में बदल जाता है, तो इस बात की आशंका है कि चीन संभावित रूप से नॉर्थ कोरिया जैसे अन्य विरोधी देशों के साथ गठबंधन कर सकता है, जिससे खतरा और ज्यादा बढ़ जाएगा. क्योंकि दोनों देशों ने साइबर स्पेस में खुलकर अपनी ताकत का प्रदर्शन किया है, खास तौर पर अमेरिका को टारगेट करते हुए.
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चीन में स्टोन पांडा, कमेंट क्रू जैसे कई सरकारी समर्थित संगठन हैं, जिन्होंने जासूसी कैंपेन चलाए हैं. साथ 2017 में स्टोन पांडा पर 14.7 करोड़ अमेरिकियों के संवेदनशील डेटा लीक करने का आरोप लगाया गया था. नॉर्थ कोरिया के लाजरस ग्रुप और एपीटी38 ने 2014 में सोनी पिक्चर्स हैक और 2017 में वानाक्राई रैनसमवेयर आउटब्रेक जैसे हाई-प्रोफाइल साइबर अटैक से चर्चा बटोरी थी.
US के पास ताकतवर साइबर हथियार
हाल ही में चीनी हैकर ग्रुप साल्ट टाइफून और वोल्ट टाइफून ने कम्युनिकेशन, एनर्जी, विनिर्माण और परिवहन क्षेत्रों में अमेरिकी कंपनियों पर हमला किया. अमेरिकी हैकिंग ग्रुप के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है और अगर कोई ग्रुप सरकार से जुड़ा है, तो अमेरिका में एनएसए के टेलर्ड एक्सेस ऑपरेशंस (TOA) और इक्वेशन ग्रुप जैसी संस्थाएं भी हैं, जिन्होंने कुछ सबसे ताकतवर साइबर हथियारों को तैयार किया है.
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अमेरिका के पास कुछ बेहद हाईटेक कंप्यूटर प्रोग्राम हैं जिनका इस्तेमाल दुश्मनों को नुकसान पहुंचाने के लिए किया जा सकता है, जैसे स्टक्सनेट, डुकू और फ्लेम. ये प्रोग्राम अमेरिका को सटीक और सीक्रेट तरीके से जासूसी करने में सक्षम बनाते हैं. माना जाता है कि उनमें से कुछ का इस्तेमाल ईरान के न्यूक्लियर प्रोग्राम के खिलाफ किया गया था.
अमेरिकी साइबर कमांड के जरिए अमेरिका ने टेरर इंफ्रास्ट्रक्चर को ऑनलाइन तबाह कर दिया है. उदाहरण के लिए ISIS के खिलाफ ऑपरेशन ग्लोइंग सिम्फनी. इसके बाद अमेरिका ने ‘डिफेंड फॉरवर्ड’ की रणनीति अपनाई है. चीन, रूस और नॉर्थ कोरिया, अमेरिका के लिए डिजिटल खतरों के सबसे बड़े सोर्स में से हैं. इसी तरह चीनी एक्टपर्ट अमेरिका को अपना सबसे बड़ा साइबर खतरा मानते हैं.
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